Friday, December 31, 2010

PYAAR

पहली  बार  अकेले  अकेले  जब  तुमको  तन्हा  देखा  था
तन्हाई  तुम्हारी  देख  के  अंजाना  सा  दर्द  होता  था 
वो  तन्हाई  को  मिटाने  के  लिए  जब  मैने  कदम बढ़ाये  थे 
तुम्हे  टूटता  दख  कर  जब  आंसू  मेरे  आए  थे 
बाहों  में  भरके  तुम्हे  जब  अंजाना  सा  एहसास  हुआ 
दिल  मेरा  भी  पिघल  गया , हाए  मुझको  भी  अब  प्यार  हुआ 

जब  तुमसे  मिलने  की  बेचैनी  में  पल  पल  तन्हा  गुज़रता  था 
मनो  जी  तो  रहा  था  मगर  हर  पल  डर  से  मरता  था 
कहीं  तुमसे  बात  न  हुई  तो  जाने  क्या  हो  जाएगा 
धरती  सी  फट  जाएगी  भूचाल  कोई  आ  जाएगा 
मेरी  बेचैनी  मिटाने  तुम  गलियों  तक  आती  थी 
तुम्हे  वहाँ  देख  कर  मेरी  जान  में  जान  आती  थी 
साथ  तुम्हारा  दो  पल  का  मुझे  जन्मो  जन्मो  का  लगता  था 
खुबसूरत  सी  दुनिया में , तुम  में  इक  अपना  दिखता  था 
अदाएं  तुम्हारी  कितनी  दिलकश , दीवाना  सा  कर  जाती  थी 
तुम्हारे  बिन  अब  रातों  को  नींद  कहाँ  आती  थी 

चुप  चुप  के  जब  रातों  को  हम  छत  पे  जाया  करते  थे 
खाली  खाली  आसमान  देख  कर  मन  बहलाया  करते  थे 
याद  आती  दिन  भर  की  बातें  साथ  बिताये  अपने  पल  पल 
सोचते  थे  रुक  जाये , थम  जाये  घड़ियाँ  न  पड़ें  अब  चल 
जब  रात  को  आसमान  में  बादल  आ  जाया  करते  थे 
तुम्हारी  सूरत  वाले  उस  चाँद  को  छुपाया  करते  थे 
बेरंग  सा  हो  जाता  था  ये  समां  हाए  उस  रात  को 
छिप  जाते  थे  टिम  टिम  तारे  जो  कहते  थे  अपनी  बात  को 

मगर  जब  आती  थी  मावस  की  रातें  सिर्फ  अँधेरा  छाया  करता  था 
उस  घने  अँधेरे  में  भी  तू  मुझे  अपनाया  करता  था 
धीरे  धीरे  बीती  वो  रातें  रोज़  दीदार  तुम्हारा  होने  लगा 
उन  रतियों  के  अंधियारों  में   कुछ  सपने  में  संजोने  लगा 
चलती  टिक  टिक  घड़ियों  का  शोर  सुनाई  देता  था 
पलकें  जब  बंद  होती  चेहरा  दिखाई  देता  था 

नींद  न  आती  थी  हमे , बस  नैन  बंद  होते  थे 
प्यारा  इक  चेहरा  दिखे , हम  बस  इसे  ही  सोते  थे 
हसी  तेरी  दख  कर  दीवाने  से  हो  जाते  थे 
खो  जाते  थे  तुझमे, तुझमे  ग़ुम  हो  जाते  थे 


फिर  उस  कड़कती  धूप  में  जब  मिलते  थे  हम  बागों  में 
कलियाँ  तक  खिल  जाती  थी , फूल  भरी  अपनी  राहों  में 
फिर  किसी  जब  पेड़  के  नीचे  कुछ  देर  हम  ठेहरा  करते  थे 
दूर  से  ही  ज़माने  की  नज़रें  तब  हम  पर  पहरा  रखते  थे 
हम  बेफिक्र  एक  दूजे  में  गुम  हो  जाया  करते  थे 
एक  दूजे  की  निगाहों  में  ही  सो  जाया  करते  थे 

उस  सन्नाटे  में  जब  भी  लहरें  उठती  थी  मौजों  की 
करीब  से  दिल  की  बातें  होती  थी  तब  नैनों  की 
रेशमी  उन  जुल्फों  का  जब  साया  आया  करता  था 
चेहरे  पे  लगता  था  पर  दिल  पे  छाया  करता  था 
पूरे  दिन  क  काम  में  जब  काया  चूर  चूर  हो  जाती  थी 
थकन  बस  उस , छाया  की  ठंडक  से  दूर  हो  जाती  थी 


फिर  बिछड़ने  का  पल  निकट  हमारे  आता  था 
आबाद  सी  उस  दुनिया  से  दूर  ले  जाया  जाता  था 
मज़बूरी  के  आगे  मजबूर  होकर  बिखर  जाते  थे 
रोज़  एक  दूजे  को  नए  कसमे - वादे  सुनाते  थे 

हकीकत  से  रूबरू  हुआ , सपना  मेरा  मजबूर  हुआ 
तन्हाई  मेरे  हाथ  लगी , बाकी  सबसे  मैं  दूर  हुआ 

सुनी  खामोश  दिल  ने  सन्नाटे  की  जब  आवाज़  थी 
खुद  को  समझाने  पर  भी  आई  तुम  मन  को  रास  थी 
मगर  कुछ  कहने  को  जब  जब  घबराया  करता  था 
खुद  से  दूर  पाकर  तुमको  जब  तुमको  न  पाया  करता  था
तन्हाई  में  रहने  वालो  की  जब  महफ़िल  में   जाया  करता  था 
जबरन  मेरे  लबों  से  जब  कोई  जाम  लगाया  करता  था 
सोचा  था  हमे  कोई  तो  अब  मनाने  आयेगा 
इस  टूटे  दिलों  की  महफ़िल  में  कोई  तो  हँसाने  आयेगा 

दिल  के  टूट  जाने  पर  भी  जब  आंसू  न  बहा  करते  थे 
पत्थर  उस  सनम  के  बिना  भी  हम  न  रहा  करते  थे 
जग  हस्त  था  देख  के  हमारी  मज़बूरी  को 
बस  मै  ही  जानता  था  अपने  बिच  की  दूरी  को 
जब  दर्पण  मै  भी  तुम्हारा  अक्स  दिखाई  देता  था 
जब  भीड़  भरे  चौराहों  पर  अपना  नाम  सुनाई  देता  था 
हरपाल  तम्हारे  पास  होने  का  सपना  टूट  जाता  था 
जिंदगी  की  राहों  मै  हर  अपना  रूठ  जाता  था 

हरपल  इसी  ख़ामोशी  के  जब  मेले  से  लग  जाते  थे 
हर  किसी  के  साथ  रहकर  भी  अकेले  से  हो  जाते  थे 
हम  को  हरदम  एक  सपना  दिखाई  देता  था 
सपने  मै  मझको  बस  सब  अपना  दिखाई  देता  था 
काश  पूरे  हो  जाते  बंद  आँखों  के  सपने  भी 
काश  सब  मै  से  मिल  जाते  कुछ  चंद  हमराही  अपने  भी
काश  हम  पर  भी  कभी  कोई  मेहरबान  हो  जाता 
काश  हमारे  लिए  कोई  अँखियाँ  अपनी  बरसता 

पर  ऐसे  ख्वाबों  को  आँखों  मै  भी  जगह  मिली  नही 
इन  ख्वाबों  को  दिल  मै  बसा  ले  ऐसी  हमसफ़र  मिली  नही 

पर  वक़्त  ने  हमारे  साथ  ही  मजाक  ऐसा  कर  डाला  था 
जिसे  मैं  अपना  दोस्त  कहता  वही  मुझे  दुश्मन  बताता  था 
उसकी  यादों  को  भूल  जाना  इक  गद्दारी  सा  होता  है 
पर  उनके  संग  अब  जीना  तो  मरने  से  भारी  होता  है 
ऐसे  सपनो  की  नगरी  से  में  हरपल  शर्मिंदा  रहता  हूँ 
मरकर  भी  जीता  हूँ ,  अपने  हाल  में  जिंदा  रहता  हूँ ............

Saturday, November 20, 2010

Nahi Ho Rahi

बहुत कुछ बताना चाहता हूँ  
पर हिम्मत नहीं हो रही 
बहुत अकेला महसूस कर रहा हूँ 
पर किसी की भी ज़रूरत नहीं हो रही 

जी चाहता है खोल दूँ दिल के सब राज़ 
पर जुर्रत नहीं हो रही 
दिल तो बार बार बिखर रहा है 
पर टूटने की आहट नहीं हो रही 

बार बार रोना चाहता है ये दिल 
पर आँखों से बरसात नहीं हो रही 
उसकी बाहों के आग़ोश में सोना था 
पर कमबख्त रात नहीं हो रही 

कभी कभी खुश हो रहा था दिल
 पर बहारों की सौगात नहीं हो रही 
जादू ये कैसा है सामने हूँ तुम्हारे 
पर लबों से बात नहीं हो रही 


सब कुछ तो कह भी नहीं सकता 
और बयां दास्तान - ए - जज़्बात नहीं हो रही   

Thursday, October 14, 2010

Naazuk pari


मेरी  पहली  कविता : नाज़ुक परी 


एक  नाज़ुक  सी  परी  जो  बस्ती  है   मेरे  ख्वाब  में 
जिसके  लिए  डूबा  रहा  मैं  शराब  में 
उसे  ढूँढा  मैंने  हर  गली 
पर  मिली  न  मुझे  वो  कली
दिल  ही  दिल  में  उसे  हम  चाहते  रहे 
और  अपने  सपनो  में  भी  गवाते  रहे 
जाने  कहाँ   की  रानी  थी  वो 
बस  हमारे  लिए  तो  कहानी  थी  वो 
डूबे  रहे  हम  जिसके  शबाब  में 
एक  नाज़ुक  सी  परी जो  बस्ती  है   मेरे  ख्वाब  में 

ज़िन्दगी  से  अपनी  नाराज़  थे  हम 
चाहकर  भी  न   उसके पास  थे  हम 
इस  कदर  वो  अपनी  ज़िन्दगी  में  मदहोश  थी 
हमारी  आशिकी  भी  उतनी  ही  खामोश  थी 
जिसे  बेइंतेहा  चाहा  हमने  हर  घडी 
मिली  न  मुझे  वो  दो  पल  के  लिए  भी 
मैं  था  इतना  हैरान  परेशान 
पीड़ा  इस  दिल  की  करता  किस  से  बयान 
सदा  गुज़रती  थी  शाम  हमारी  मैखाने  में 
हाँ  वोही  है  हम  जो  न  देखते  थे  कभी  पैमाने  में 
और एक दिन आई वो मेरे गरीबखाने में 
मानो ले आई वो साथ बहारों का मौसम ,और चले गए वो पतझड़ के दिन
हम रह न सकते थे कभी जिनके बिन
आज आई है ख़ुशी बेइंतेहा मेरे हिसाब में
एक  नाज़ुक  सी  परी  जो  बस्ती ह  मेरे  ख्वाब  में

Wednesday, September 8, 2010

Kuch To Dekho

To Those Who Never Fall In Love.........

इन  आँखों  में  छुपे  उस  राज़  को  देखो
सुनो  हर  सुर  को  और  साज़  को  देखो
साथ  ज़िन्दगी  का  कुछ  वक़्त  का  ही  सही
कुछ  देर  तो  प्यार  करने  वाले  जांबाज़  को  देखो

दिल  में  उठी  लहरों  में  बह  कर  तो  देखो
साथी  संग  दो  लफ्ज़  कह  कर  तो  देखो
तन्हाई  में  उस  बिन  रह  कर  तो  देखो
प्यार  के  मीठे  गम  को  सह  कर  तो  देखो

प्यार  में  छुपे  इज़हार  को  देखो
प्यार  में  छुपे  इकरार  को  देखो
प्यार  में  छुपी  तकरार  को  देखो
प्यार  में  छुपी  हार  को  देखो

Zindagi

ज़िन्दगी  के  कुछ  अहम  मोड़  के  लिए  कुछ  पंक्तियाँ

यादों  में  बह  जाने  का  नाम  है  ज़िन्दगी
खामोश  लबों  से  दिल  की  बात  कह  जाने  का  नाम  है  ज़िन्दगी
जुदाई  बेवफा  की  मार  न  दे  आशिक  को
हर  दर्द  को  सह  जाने  का  नाम  है  ज़िन्दगी

इश्क  की  राहों  में  फना  हो  जाना  है  ज़िन्दगी
किसी  के  प्यार  में  सूली  चढ़  जाना  है  ज़िन्दगी
कोई  अपने  टूटे  हुए  दिल  को  कैसे  समझाए
हर  पल  उसी  के  लिए  मर  जाना  है  ज़िन्दगी

टूटे  ख़्वाबों  की  कश्ती  है  ज़िन्दगी
तेरे  मदहोश  नैनो  की  मस्ती  है  ज़िन्दगी
ज़माने  वाले  माने  या  न  माने
अब  बेवफा  पर  न  जचती  है  ज़िन्दगी

सूरज  की  आग  से  बेहोश  है  ज़िन्दगी
चांदनी  इस  रात  में  मदहोश  है  ज़िन्दगी
अब  तो  तुझ  बिन  बीते  हुए  हर  पल  में
तुझी  को  पाने  का  जोश  है  ज़िन्दगी

Monday, September 6, 2010

Kabhi Kaha Nahi

तेरे  इश्क  की  है  दीवानगी  पर  कभी  कहा  नहीं
हर  वक़्त  तेरे  लिए  आवारगी  पर  कभी  कहा  नहीं

बेक़रार  हो  गया  तेरे  लिए  पर  कभी  कहा  नहीं
प्यार  हो  गया  तुझसे  पर  कभी  कहा  नहीं

दीदार  किया  चुप  चुप  के  पर  कभी  कहा  नहीं
प्यार  किया  चुप  चुप  के  पर  कभी  कहा  नहीं

इज़हार  करना  चाहा  पर  कभी  कहा  नहीं
ऐतबार  तो  था  पर  कभी  कहा  नहीं

( इक  दिन  उसे  पाकर  खुश  हो  गए  पर  दूसरे  ही  दिन )

देखा  किसी  और  की  बाहों  में  पर  कभी  कहा  नहीं
अँधेरा  ही  है  अपनी  राहों  में  पर  कभी  कहा  नहीं

बदला  आँखों  से  हर  मंज़र  पर  कभी  कहा  नहीं
छूट  गया  हमसफ़र  पर  कभी  कहा  नहीं

नहीं  है  अब  कोई  मंजिल  पर  कभी  कहा  नहीं
तू  है  हमारा  कातिल  पर  कभी  कहा  नहीं

हाथों  में  है  जाम  पर  कभी  कहा  नहीं
प्यार  का  यही  है  अंजाम  पर  कभी  कहा  नहीं

( उसे  भूलने  के  बाद  भी  )

अधूरा  था  तुझ  बिन  पर  कभी  कहा  नहीं
आज  पूरा  हूँ  तुझ  बिन  पर  कभी  कहा  नहीं

यादों  में  है  तू  पर  कभी  कहा  नहीं
बेवफा  है  तू  पर  कभी  कहा  नहीं

Sunday, September 5, 2010

Arz kiya hai



Main hun hi kaun

क्यों  मेरे  लिए  कोई  इंतजार  करेगा ,
अपनी  जिंदगी  मेरे  लिए  बेकार  करेगा .
मै  क्या  हूँ  मेरी  हस्ती  ही  क्या  है ,
क्या  देखकर  हमसे  कोई  प्यार  करेगा  !!

आँख  मै  नशा  दिया  करते  है  हम ,
सबकी  नींदें  चुरा  लिया  करते  है  हम ,
अब  से  जब - जब  पलके  झपके ,
समझ  लेना  तब - तब  याद  किया  करते  है  हम  !!

रात  के  करवटों  को  बदगुमानी  है ,
जो  भी  चाहे  कर  ले  मनमानी  है ,
सवारता  है  इश्क  रात  की  जुल्फों  में ,
प्यार  से  लिपटने  की  चाहत  ही  जिंदगानी  है  !!

उसकी  दोस्ती  मै  ये  नौबत  आ  गई ,
ठंडी  हवा  भी  हमे  जला  गई ,
हवा  कहती  है  तुम  यहाँ  तरसते  ही  रह  गए ,
मैं  तुम्हारे  दोस्त  को  छू  कर  भी  आ  गई !!