छलकती आँखों को वो जाम कहते है
मेरी मोहब्बत को वो इलज़ाम कहते है
बेदर्दी से नीलाम किया मेरा इश्क
किसको बताये इसे क़त्ल-ए-आम कहते है
वक़्त ने कैसे कैसे सितम हम पर ढाए
दिल की उलझनों में ऐसे उलझे
की किसी से छुपा भी न पाए
और किसी को बता भी न पाए
नाम थी आँखें नींद की सिफारिश किस्से करते
बंद की पलकें और झरे आंसु , आंसु की बारिश किसपे करते
No comments:
Post a Comment