Saturday, February 12, 2011

Arz Kiya Hai



छलकती आँखों को वो जाम कहते है

मेरी मोहब्बत को वो इलज़ाम कहते है

बेदर्दी से नीलाम किया मेरा इश्क

किसको बताये इसे क़त्ल-ए-आम कहते है




वक़्त ने कैसे कैसे सितम हम पर ढाए

दिल की उलझनों में ऐसे उलझे

की किसी से छुपा भी न पाए

और किसी को बता भी न पाए




नाम थी आँखें नींद की सिफारिश किस्से करते

बंद की पलकें और झरे आंसु , आंसु की बारिश किसपे करते

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