Sunday, March 13, 2011

Ilzaam

मुझ पर कभी इलज़ाम आया था
जब भी मोहब्बत का नाम आया था
ठुकराकर मुझे हर कोई बस गया
फरिश्तों का भी ये पैगाम आया था 

सनसनी हुई थी इश्क-ऐ-अंजाम से
गुनाह करे थे दिल-ऐ-नादान ने
क्यों जी रहा था बिन ज़ख्मों को भुलाए
जब खुशियाँ ही थी गम-ऐ-मकान में

No comments:

Post a Comment