यूँ तो हमे कभी शायर कहते थे ,
मगर ना जाने आज क्यूँ अपनी पहचान से डर लगता है ,
शौकिया तौर पे हमारे दिल से खेला था
जाने कैसा खेल था कि आज भी ऐतबार से दिल डरता है
मगर ना जाने आज क्यूँ अपनी पहचान से डर लगता है ,
शौकिया तौर पे हमारे दिल से खेला था
जाने कैसा खेल था कि आज भी ऐतबार से दिल डरता है
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